Tuesday, October 23, 2018

वाते मुंगा मोलारी- भीमणीपुत्र मोहन नायक

*वाते मुंगा मोलारी*

               *My swan song*

*गोरमाटीर वाङ्मयीन नंजर -एक चिंतन...!*

         गोरमाटी ई जन्मजात साहित्यिक छ. *सहितस्य:भाव:* कतो साहित्य, हानू साहित्येर विवेचन अभ्यासक करमेले छ. सायित्य वा साहित्य ई शब्द गोरमाटी भाषा व्यवहारेमं आढळ आयेनी तरी पणन सेनं सायी वेयेवाळो 'भाव' मातरम गोरमाटीर डिले माईरे DNA माई ठासन भरो छ. *जीव जनगानीनं सायी वेस* ई गोर वाङ्मयीन संस्कृती माईर अरदासेर अभिव्यक्ती, सायित्य-साहित्य ये संकल्पनारो उत्कृष्ठ भावाविष्कार सिद्ध वच. एकंदरीत "सेन सायी वेये वाळो- समाज साक्षेपी- समाज हितेरो भावाविष्कार कतो सायित्य". ई गोरमाटी भाषानं अभिप्रेत छ. गोरमाटी भाषा कतरी समृद्ध अन श्रीमंत छ, ई सायित्य ये शब्देर संकल्पना परती सिद्ध वचं.
            गोरुर सौंदर्य प्रेम, काव्य कल्पकता अन रसिकता इ अभिजात छ. वाङ्मयीन रसेर परक जेन कळचं ऊ अभिजात गोरमाटी! वाङ्मयीन रस चाकेर गोरमाटीर प्रबळ शक्ती इज गोरुर समृद्ध वाङ्मयीन परंपरार गमक छ.
*तोन भुरीया दराऊ मुंगा मोल!*
*रसली हाटे भरिय सारी सोनेरी!!*
वाङ्मयीन रस गोर याडी भेनेऊन चाकतू आवचं ई ये लेंगी माईर 'रसली' ये शब्दे परती ध्वनीत वचं. वाङ्मयीन रसेर सुंदर कल्पना ये लेंगीमं देकेन मळचं.
*कोरो पेटपडा झरीयारे*
*झरणाको पाणी..........*
*गेरीयावाळी आयी ओतं*
*पाणीयारे...........*
*ओतो पडीर उताणी*
*पि लं गेरीया........*
*पि लं... रे ...झरणाको पाणी!*
लेंगी माईरो वाङ्मयीन 'रस' ई याडी माया सगळतीरे (पृथ्वी) कोरे पटेपडारुपी हिवडा माईती पनासे हुई पाणी सरिको निरमळ 'पनावरस' छ. ई ये लेंगी माईर मध्यवर्ती कल्पना छ.
           भाडं अश्लील, श्लील लेंगी हाम कोणी बोलरे;  बोलविता धनी वेगळाची.......श्लील, अश्लील लेंगी ई याडी माया सगळतीरो पनाव छ. *सामळोये काकी दादी रिस मत करजो; होळी बोलचं .....ये भांड!*
ई भावसूचकता ये चरणेमाईती अभिव्यक्त वचं.
               ये लेंगीरो ई गर्भितार्थ मनं "मारोणी" लकतूवणा लाबो वेतो तो मारोणीरो गर्भाशय आजी प्रगल्भ वे जातो....!
          ये गेरीया! गेरणी वाङ्मयीन रसामृत धापन पितांणी उताणी पडगी छ. तू भी पी लं अन वाङ्मयीन तरच भगालं.... पि लं गेरीया.....!
         लेंगी श्लील छ तो अश्लील भी छ. परिहास, मस्ती, विरह, प्रणयचेष्टा, इतिहास, काव्यकल्पक्ता आसे वानावानार गणेती ऊ परिपूर्ण छ. लेंगीनं सोतारो नैसर्गिक सौंदर्य छ. ओरो रूप सौंदर्य शब्देमं भी नावडेनी; आतरी ऊ देखणी छ, जसो सणगारी नार! ओरो सौंदर्य लुटतू आयी चाये, रसिकराज भुंवा नायी! भुंवा ई गोर याडीर काव्य कल्पना माईरो प्रियकरेर
 प्रतीक छ.
*वडं भमरा ....*
*खंवीयापं बेटो*
*वडं भमरा ....*
*वडं जो रे, डगर जो रे......*
*वारी आयेरे तोपर*
         *यु कू वडीयूं मारोणीये..*
         *मारी बाळपणेरी परीतिये!*
ई लेंगी गोर याडीर अभिजात काव्यकल्पनारो सुंदर उदाहरण छ. ई लेंगी रसीकराज भुंवा अन सौंदर्येर प्रतिक मारोणी कतो सौंदर्य अन रसिक ये दोयी माईर संवादेरो काव्यगुंफण छ. गोर याडीर काव्यकल्पना माईर "मस्तानी कासवाडी, घमेंडी स्वछंद लांबडी, कागलार समण विषयक नंजर अन भुंवारो सौंदर्यप्रेम ये से गोर याडीर सर्जनशील वाङ्मयेर ऊर्जास्रोत छ.
                गोर याडी भेनेऊन प्रतिभा अन काव्यकल्पना मुंडयागं महाकवी कालिदासेर प्रतिभा अन काव्य कल्पकता फिकथुस वाटचं.
             गोर याडीर काव्यकल्पना माईरो प्रियकरेर प्रतिक मानो हुवो इज रसिकराज भुंवा व्हाया महाकवी कालिदासेरो 'शाकुंतल' ये मार्गेती जान पाश्चिमात्य साहित्यकृतीमं नायकत्व स्वीकारतू दखावचं.
             लेंगी काव्यकल्पनार संदर्भेमं जेष्ठ साहित्यीक डॉ. केशव फाळके कचं क," इसमे काव्य गण स्वाभाविक रितिसे दिखाई देते है। ऐसा कहा जाता है, आदी कवी वाल्मिकीके काव्य का स्रोत ऐसा ही दुःखद अ-कर्म था। इसमे नलराजा का उदाहरण दिया है, जिसमे मै समजता हू कि यह गीत असंस्कृत नही हो सकता। इस गीत की राचनामे भी गांभीर्य व व्याकुलताके अनुकूल राग "मारवा" मे है। राग "मारवा" का चलन इसमे स्पष्ठ है।"
             नळराजार करूण रसेर दीर्घ लेंगी तांडो आज भी व्याकुळ वेन बोलतू दकावचं. गोर वाङ्मये माईर इज दीर्घ लेंगी महाकवी वाल्मीकेर ऊर्जास्रोत छ. गोरुर वाङ्मयेप आतेर श्रोत अन स्मृती वाङ्मय वेते हुये छ. पणन तांडेनं आपणे दिर्घ लेंगीनं महाकाव्येर रूपेम लिपीबद्ध कोनी करतू आये ईज तांडेर दुर्दैव ...! आतेर प्रस्थापित व्यवस्थारे शतकानशतकेरे छळेती तांडेरो वाङ्मयीन सौंदर्य भी भटको रेगो. प्रा. रवींद्र राठोडेर "मी तांडा बोलतोयं" ये काव्यकल्पना माईरो *भटका सौंदर्य* ई लक्षवेधी शब्द घणो व्यापक अन अर्थपूर्ण छ.
श्लील अश्लील लेंगीन वस्तुनिष्ठतार धार छ. अश्लील लेंगीर स्वभावे लारं मानववंशीय शास्त्रीय कारण छ. ई म कयिकवणा सिद्ध करमेलो छु. होळीर गेर ते दांडी पुनमेताणू कोयी लेंगी न बोलणू ई तांडेर दंडक अर्थपूर्ण छ.
         जेष्ठ विचारवंत अशोक राणार संकल्पना माईर स्वच्छंदतावाद, अभिजातवाद, वास्तववाद ये तिनी मूलभूत संकल्पनार मदरलँड ई तांडेर लेंगी छ. करन येन रोमँटिसीझम ई इंग्रजी पारिभाषिक नाम खलचं. रोमँटिसीझम ये शब्देर व्युत्पतीर जड भी गोरमाटी भाषा शब्द *रामणो* ये लैगिंक भावाविष्कारे शब्देमं लाबचं.
               "लेंगी ई वाङ्मय अन कला क्षेत्रे माईर गोर बोली भाषारो एक अदभुत आसो मुक्त आविष्कार छ!"
              जगेर पुटे परेती 6000 भाषामं भी ई मुक्त वाङ्मय प्रकार आढळ आयेनी. ई विशेष.

*गोर वाङ्मय माईरो शृंगार रस-*
            गोरमाटी भाषा ई नऊ रस 23 अलंकार अन सोतार मालकीर अलंकारिक शब्देती परिपूर्ण छ.
            शृंग(कामवासना) ये रसेरो स्थायीभाव गोरमाटी भाषामं 'धण' ई शब्द सिद्ध वचं. 'गावडी धनासगी, कतं धणायेन चलीगीती' आसो भाषा व्यवहार तांडेमं रूढ छ. ये भाषा व्यवहारे परती 'धण' ई शब्द शृंगार रसेरो स्थायीभाव सिद्ध वचं. 'धण' ये गोरमाटी शब्दे परती 'धणी' ई शब्द रूढ हुवो छ.
         मराठी 'धनी' ये शब्देर व्युत्पतीर जड भी 'धणी' ये शब्देमं लावचं. गोरमाटी भाषा शब्द 'सणगार' ये शब्दे माईती संस्कृत 'शृंगार' ई शब्द वेपडो हुवो छ. एकंदरीत गोरमाटी भाषा सहवासे माईती संस्कृत भाषा विकसित हूयी छ, ई मारो स्पष्ठ मत छ.

*दोयरा-*
          एकदन मोटीयार छोरा मोडा मोडार पागडी भांदन टेकडीपं बेसन गावडी चराऊ करचं. जना एक मोटीयार छोरी ओ छोरानं दोयरा माईती वातेर चोट मारचं.
*टिकी टिकी टेकडीपं बेटो मोटीयार*
*मोडं मोडं भांद पागडी, मोडामोडारो पेज!*
       
           छोरीर यी वाङ्मयीन चोट ओ छोरानं कळेनी. सांजपडी घर आयेर बाद, छोरीर ई वात छोरा ओर भोजायीनं कचं. सवार ऊ छोरी तोन भळीये तो म कू जू छोरीनं ओर चोटेर वतारो देस. हानू ओर भोजायी सिकावचं.
दुसरे दन गावडी चारायेवणा आजी ऊ छोरी ओ छोरान भळचं. जना ऊ छोरा ओर भोजयी सिकामेली जकोण दोयरा ओ छोरीनं कचं.
    *पानेरी कुपळी, लुंगारीवणीयार*
    *तारे सरकी बांडीबटकी, पाणी भरं दि च्यार!*

ई चोट सामळते खमत छोरी कचं-
*सिको साको बापडा, बोलो वेतो काल*
*पडन देती बेसका, चुमेन देती गाल*

          ये सिकोसाको बापडा! कालेन जर तु मार दोयरार वतारो दिनो वेतो तो म तोनं हेट पडन मनमुराद 'बेसका' देयवाळ रुं. नुसता बेसकाज कोनी तो मार नाजूक गाल भी तोनं चुमेन देयेवाळ रुं......!

            ये दोयरा माईर *पडन देती बेसका; चुमेन देती गाल* ई भाषाशैली शृंगार रसेर उत्कृष्ठ नमुना छ. ये दोयरा माईर *पानेरी कुपळी, लुंगारीवणीयार* ये भाषिक सौंदर्य रसिक मनेनं अंतर्मुख करे सवायी रेयेनी. *पानेरी कुपळी, लुंगारीवणीयार* (लुंगेर वानार कड पातळी नार)
*बांडीबटकी, पाणी भरं दि च्यार!* ई भाषिक सौंदर्येरो गजब ठाठ तो नंजर लागे सरिको छ. तांडो ई आर्थिक दृष्ट्या गरीब छ; पणन वाङ्मयीन नंजरेती समृद्ध, श्रीमंत छ. येरो ई उत्कृष्ठ उदाहरण छ.
            "साहित्येमं बोलीभाषा चालेनी ये प्रस्थापित कावानं गोर बोलीभाषा अभिव्यक्ती ई एक जबरदस्त आव्हान ठरचं.....!
           नवपिढीर गोर शब्द सैनिकेर वाङ्मयीन अभिरुची प्रगल्भ करे आतरी धमक गोरुर परंपरागत वाङ्मयेमं छ....! *तांडो वाचो.....!*

संदर्भ-
       1) ५ वो अ. भा. गोर बंजारा
           साहित्य संमेलन डोंबिवली
           संमेलनाध्यक्षीय भाषण

©✍ *भीमणीपुत्र*
      *मोहन गणुजी नायक*

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