Sunday, May 5, 2019

गोर बंजारा साहित्य युगका तेजस्वी तारा, भीमणीपुत्र मोहन गणुजी नाईक का जन्म दिन गोरबोली/बंजारा भाषा दिन के रुपमें मनायी जाए।

  गोर बंजारा साहित्य युगका तेजस्वी तारा, भीमणीपुत्र मोहन गणुजी नाईक इनका जन्मदिन गोरबोली/बंजारा भाषा दिन के रुपमें मनायी जाए।

(यह संदेश पुरे भारत में पढनें हेतू  हिंदी भाषा में लिखा है।) 

    लो गोरबोली/बंजारा भाषा को गौरावान्वित करते है।

   आदरणीय मोहन गणुजी नाईक (जन्म तिथि- 02 अप्रैल 1950) वे अपने कलम नाम (pen name) भीमणीपुत्र के नाम से भी जाने जाते है ।और कोर/गोर में  लोकप्रिय है। एक प्रसिद्ध साहित्यिक, कवि, कथाकार है। एक मानवतावादी होने के अलावा, जिन्होंने स्वतंत्रता, न्याय,समता तत्वोंको अपनाकर गोर बंजारा लोकसाहित्य, गौरवपूर्ण इतिहास और संस्कृति पर अपना बहुमूल्य साहित्य लिखा हे।,यह समस्त कोर/गोरबंजारा समुदाय के लिए दिशादर्शक है।
   आज भीमणीपुत्र मोहन नाईक के प्रयास से गोरबंजारा साहित्य में एक नया मोड़ आया। "फोकलोर" (folk-lore) शब्द के आधार पर, "लोकसाहित्य यह असंस्कृत /मुढ लोगों के ज्ञान है।" विद्वानोंने इस वाक्यार्थ द्वारा की गई व्याख्या विजेताओंकी बाजूको ध्यानमें रखकर बापूने  स्पष्ट किया कि यह विद्वानोंकी दोषपूर्ण व्याख्या है। और इस दोषपूर्ण स्पष्टीकरण को खारिज कर उन्होंनें गोरबंजारा लोकसाहित्य को साहित्य विश्वमें नया आयाम प्राप्त कर दिया है। गोर बंजारा साहित्य विश्व के तेजस्वी तारा के रूपमें  विशेषत: तात्कालिक गोर संस्कृति और  साहित्य  को उन्हींसे उत्तेजना मिली। जैसे अन्य साहित्य में ‘रीति’ या ‘काव्यरीति’ शब्द का प्रयोग काव्यशास्त्र के लिए हुआ था। इसलिए काव्यशास्त्रबद्ध सामान्य सृजनप्रवृत्तिऔर रस, अलंकार आदि के निरूपक बहुसंख्यक लक्षणग्रंथों को ध्यान में रखते हुए इस समय के काव्य को ‘रीतिकाव्य’ कहा गया। इस तरह हमारे तांडा काव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों की पुरानी परंपरा के स्पष्ट संकेत गोरबंजारा साहित्यमें शृंगारी प्रवृत्तियों निस्संदेह एंव निसर्गतः संकेत मिलते हैं। इस बातोंको निस्संदेह ध्यानमें रखते हुए उन्होंने अनेक साहित्यकृती का निर्माण किया है। जिसमें श्रेष्ठतम साहित्यकृती "गोरपान" उसीका उत्कृष्ट नमुना है।
  बापू भीमणीपुत्र की साहित्य रचनाओं में गोरबंजारा समुदाय की तत्कालीन संस्कृति एंव प्रासंगिक इतिहास बोलता है। उन्होंने अपने साहित्यसे तांडा प्रेषित जीवन की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का लोकसाहित्य( folk literature) के स्त्रोतों से मार्मिक चित्रण किया है। "अगर आप समस्त गोरबंजारा समुदाय के तांडा जीवनी के  आचार-व्यवहार, भाषा-भाव, रहन-सहन, आशा-आकांक्षा, दुःख-सुख और सूझ-बूझ को जानना चाहते हैं तो भीमणीपुत्र से उत्तम परिचायक  मिलना नामुमकिन है। हमारी गोरबोली भाषा और संस्कृती का एक सौंदर्य संपन्न लावण्य रूप बंजारा लोकगीतोंमे प्रतित होते है। इसके खोज का असामान्य कार्य बापूने किया है। एक उदाहरण के तौरपर--

 पोरी रातेरी थाडी थंडीरं
 पींजाराओ पींज दे दं..
 मारी ओडेरी सोडे थाडीरं
 पींजाराओ पींज दे दं..
मनं सासूरो सासरवासं रं
पींजाराओ पींज दे दं...
जसो येडीमं काटो सलंरं
पींजाराओ पींज दे दं..
तारी हारे गी घणं दुर रं
पींजाराओ पींज दे दं....
तारी गाडीरी पींजणी पींज लं
पींजाराओ पींज दे दं....!

   भीमणीपुत्र बापू एक  विख्यात साहित्यिक / कवि राजाश्रित भावके है। जिसके फलस्वरूप इसमें चमत्कारपूर्ण व्यंजना की विशेष मात्रा तो मिलती है परंतु  "पिंज देद" काव्य हमसे बडे निसन्देह से विमुख भी हो गई। उनके साहित्य और काव्यधारामें में अलंकार और रसिकप्रिया में रस का सोदाहरण निरूपण है। जिसमें गोर तांडा संस्कृति की तन्मयता के स्थान पर एक सजग कलाकार की प्रखर कलाचेतना प्रस्फुटित है। उन्हींसे गोर बंजारा तांडा साहित्य का अजस्र स्रोत प्रवाहित हुआ। जिसमें नर-नारी-लोक जीवन, त्योहार और लोकसाहित्य के रमणीय पक्षों और तत्संबंधी सरस संवेदनाओं की अत्यंत कलात्मक अभिव्यक्ति व्यापक रूप में पायी जाती है। इस बातको हम गोरभाई बहनें पहलीबार महसूस कर रहै है। उनका तांडा निगाहों से सन्मुख साहित्य अधिकतर शृंगारमूलक और कलावैचित्रय से युक्त है। उपरोक्त गीतसे इसी प्रेम के स्वच्छंद भावोंको बापू गोरबंजारा प्रेमभाव और तांडा प्रेरित संस्कृति की गहराइयोंको स्पर्श किया है। मात्रा और काव्यगुण दोनों ही दृष्टियों से उनका संशोधित काव्य उस समय का नर-नारी-प्रेम और सौंदर्य की मार्मिक व्यंजना करनेवाला काव्यसाहित्य महत्वपूर्ण है। उन्होंने विभिन्न साहित्य  रस और वीरकाव्य के सृजन को भी प्रेरणा दी है। इस लिए उनके नामपर 5 वे अखिल भारतीय साहित्य संम्मैलन, 2018 डोबिवली, मुंबई के संमेलनाध्यक्ष की मोहर लगायी गई  और यह संमेलन ऐतिहासिक रहा। वे गोर बंजारा साहित्यिकोमें में भूषण प्रमुख हैं। जिन्होंने अनोखी शैली को अपनाते हुए भी गोर संस्कृति भावका ओजस्वी वर्णन किया। इनके द्वारा "गोरपान" किताबमें लिखित काव्योंमे में रस, अलंकार और नायिका के लक्षण देकर कवित्त सवैए में प्रेम और सौंदर्य की कलापूर्ण मार्मिक व्यंजना की है। जैसे इस महान भीमाणीपुत्रका का एंव गोरबंजारा छंदों का निरूपण व्यक्त होता है। विभिन्न मुद्राओंवाले अत्यंत व्यंजक सौंदर्यचित्रों और प्रेम की भावदशाओं का अनुपम अंकन इनके सहिष्णुतापूर्ण साहित्यमें गोरपानके माध्यमसे जहाँ स्वच्छंद प्रेम की अभिव्यक्ति है । गोर बंजारा  प्रेम की तीव्रता और गहनता की अत्यंत प्रभावशाली व्यंजना  इस किताबमे प्राथमिकता से है। 
  गोरपान में उल्लेखनी काव्य यह गोर काव्यमेः ऐहलौकिकता, श्रृंगारिकता, और अलंकार-प्रियता इस गोरबंजारा साहित्य युग की प्रमुख विशेषताएं हैं। रस, अलंकार वगैरह काव्यांगों के लक्षण लिखते समय उदाहरण के रूप में – उन्होंने विशेषकर श्रृंगार के आलंबनों एवं उद्दीपनों के उदाहरण के रूप में – "गोरपान" किताबको लिखा है। उनकी यह साहित्यकृती समस्त गोर बंजारोके लिए प्रतिनिधिक मानी जाती है। श्रृंगार रस  गोरपानमें रसराज रुपमे समाया है। श्रृंगार का अर्थ हुआ कामोद्रेक की प्राप्ति या विधि श्रृंगार रस का स्थाई भाव दांपत्य प्रेम है । पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका, छोरी-छोरा कि प्रेम की  अभिव्यंजना की श्रृंगार रस की विषय वस्तु गोरपानमें युक्त है। श्रृंगार रस के संयोग और वियोग दो प्रमुख भेद "पिंज देद"हैं इन दोनोंने कितने क्रियाकलाप सुख कारण का  भाव वेदनाएं स्थान पाते हैं इसको विस्थापन की कोई सीमा नहीं है इसी कारण ही उनकी गोर साहित्य / काव्यकी दृष्टि सभी साहित्यमें सरस और सन्मुख है। उनकी साहित्य रचनाओं में गोरबंजारा समुदाय की तत्कालीन संस्कृति  एंव प्रासंगिक इतिहास बोलता है। उन्होंने अपने साहित्यसे तांडा प्रेषित जीवन की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया है। 
   इस कारण विवश मैंने "गोरपान" किताब की  आंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजी भाषामें समिक्षा कर Bhimniputra's GORPAN: The Linguistic Beauty  In Gor-Boli Dialect (A Socio-Cultural Study And Analysis)  किताब को  critically anlysed कर लिखी है। ताकी पुरे विश्वके कोर/गोर इस महान साहित्यकृतीसे अवगत हो। और हमारी वैभव संपन्न  सांस्कृतिक धरोहर  विश्वमें पहुंचे । मैंने इस किताबको आज विश्व के तेरह online web portal पर उपलब्ध किया। और एकही सालमें  विश्वके गोर बंजारा, रोमा,जिप्सी बंजारा  वाचकोंने आजतक किताबकी आठ हजार तिनशों तीन कॉपी खरीदकर गोर बंजारा साहित्य विश्वमें यह एक नया इतिहास और रिकार्ड बनाया है। इसी वजहसे भीमणीपुत्र बापू  एंव बंजारा संस्कृति का नाम  दुनिया में रोशन हो रहा है। यह समस्य गोर बंजाराको बडे गर्व कि बात है । गोरबोली का यह बडा सन्मान समजा जा सकता है । भविष्यमें गोरबोली को घटना की 8 वी सूचिमें निश्चित तौर पर समाविष्ट होने  हेतु सभीने एकजुट होकर प्रयत्नशील  रहना  है। 
  उपरोक्त वजह से इस महान साहित्यिक, भीमणीपुत्रको  गोर बंजारा  साहित्य युग का प्रतिनिधिक साहित्यिक एंव गोर बंजारा साहित्य विश्व का तेजस्वी तारा हम मान सकते  है। उनके इस महान कार्य का सन्मान मुंबईमे 2018 में अ, भा, गोर बंजारा साहित्य संमेलन के संमेलनाध्यक्ष रुपमें हुवा भी है।"साहित्यमें बोलीभाषा का कोई स्थान नही इस मत प्रवाहको गोरबोली भाषा अभिव्यक्ती एक आवाहन"  यह विषय ५ वे अ.भा.गोरबंजारा साहित्य संमेलन मुंबईके संमेलनाध्यक्षयीय भाषणसे अग्रेसित कर  गोरबोली भाषेको न्याय देनेका  प्रयास उन्होंने किया है। 
  भीमणीपुत्र बापूने यह सबसे पहिले संशोधित किया है की "गोर वाडःमयीन सभ्यतामें विराजमान रहा "गिद" यह गोरबोली भाषा का आधार (जन्म सिद्धान्त ) होने का दावा किया है। उन्होंने  यह दावा भाषा विशेषज्ञ  लुडविंग न्वार के yohe yo के संदर्भोंके आधारभूत तत्वो के  आधारित सर्वप्रथम किया है। इसी कारणवश भीमणीपुत्र बापू को "गोरबोली भाषा विशेषज्ञ" नामसे गोरमाटी समुदाय के मान्यताओंसे वे अग्रणी बने है। गोरबोली भाषा एक सौंदर्य संपन्न लावण्य रूप को और गोर संस्कृतिको को उजागर करनेवाले भीमणीपुरत्र महान साहित्यिक के कार्य का उचित गौरव हेतु उनका जनमदिन गोरबोली/बंजारा भाषा दिनके रुपमें मनाने की हम सभी गोर बंजारा भाईयों और बहनों कामना करते है। और कोयी गोर बंजाराको भाई बहनोंको  इसे संदेह न हो। इस प्रस्तावसे हम सभी गोरभाई समर्पित भावसे स्विकार करे। भीमणीपुत्र बापूकी इस महान साहित्य योगदान का उचित सन्मान हेतु, गोरबोली भाषा, समुदाय, संस्कृति के लिए, अपेक्षित महत्व को प्राप्त करने के लिए तथा गोरबोली कि वर्तमान गिरावट को सुधारने के लिए भाषा दिन जैसे उपक्रम मनाने के लिए आज कदम उठाने कि आवश्यकता है।  हमारी अपनी भाषा के सम्मान, प्यार और गर्व के दृष्टिकोण से मनाने के इस दिन को देखने के लिए हमारा समुदाय उत्साहित है। इस प्रस्तावको हम सभी प्रेमभावासे स्विकार करेंगे और समस्त गोर समुदायके प्रेमपूर्वक सहयोग की बडे हर्षसे  मै कामना करता हुँ।

इस महत्वपूर्ण विषयपर आपके सुझावोंका स्वागत है। 

गोर बंजारा समाज की सभी संघटना तथा संस्थाओं के अध्यक्ष एंव संघटक गोरबोली/बंजारा भाषा दिन मनाने के इस ऐतिहासिक विषयके समर्थनमें उचित ठराव पारित कर निचे दिये  मेल पतेपर भेजने की कृपा करे।

 क्रांतिकारी संत सेवालाल बापू कि कृपा दृष्टीसे आदरणीय  भीमणीपुत्र बापू को लंबी उम्र मिले।

शुभकामनाकै साथ !!     

"गोरबोली भाषा/बंजारा भाषा दिन कृति समिति" 
                                             
                                                   आपका,
                                          प्रा.दिनेश सेवा राठोड
                      (All India Banjara Sewa Sangh)
       E-mail- profdineshrathod@gmail.com             www.profdineshrathod.blogspot.com
        Mob- +91-9404372756

भीमणीपुत्र मोहन गणुजी नाईक


1 comment:

  1. भिमणीपुञ मोहन नाईक गोरबंजारा जमातीकी वैचारिक धाराकी निवकी ईट है!जिनका गोरबोली भाषाके विकासके लिए महत्वपुर्ण योगदान है! ऐसे व्यक्ती का जल्मदिनको गोरबोली भाषा के रुपमे मनाना आपणे आपमे गौरवशाली बात है!डाँ.अशोक पवार ,लोहरेकर प्राध्यापक ,अर्थशास्त्र विभाग डाँ.बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विद्यापिठ औरंगाबाद .9421758357.pawarashok40@gmail,com

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