Wednesday, June 5, 2019

वोल्गा से गंगा' अन गोर /गोर बोलीभाषार पेनेर कोसा - एक खोज..!-भीमणिपुत्र मोहन गणुजी नाईक

                             वाते मुंगा मोलारी
                      My swan song

'वोल्गा से गंगा' अन गोर /गोर बोलीभाषार पेनेर कोसा - एक खोज..!*

             आपणे मालकीर भाषा करन अभिजात गोरबोली भाषार स्वतंत्र अस्तित्वेर ओळख गोर (बनजारा) गणसमाज आजेलगस  जतन करन मेलमेलो छ.गोरबोली भाषारो गेयरुप आज भी ढावलो,मळ्णो,हावेली,नातरो,ओळंग,आरत ये जन्म ते मरण धरणेताणूर वयीवाटेमं जीवतो छ.गोरबोली भाषा इ छप्पन भाषार एक सोबतण छ.ये छप्पन भाषार गौरव ज्ञानेश्वर माऊली करमेलो छ. सातशे वरसेर आंगड्यार चंद कविर "रासा" महाकाव्येमं भी गोरबोली भाषार छट्टा आढळ आवचं.गोरबोली भाषा इ कुणसीज भाषार उपबोली छेनी.आतराज कोनी तो संस्कृत भाषा ई गोरबोली भाषार सहवासेम विकसित वेमेली छ.उदः- "केटो" !
                  "केटो" पद्धतीती येड रमती माईर उत्पादीत मासबंदेर रयतवार समान वेटा पाडन ओनं से मळभळन वेटन लेयेरो ई वयिवाट फगत गोरधाटीमज रुढ छ.केटो पद्धतीती समान वेटा पाडेवाळेनं गोरबोली भाषामं "कितूं" कचं. केटो > कितूं > कितव ये शब्दोत्पतीरो प्रवास गोरबोली भाषार स्वतंत्र अस्तित्वेर ओळख सिद्ध करचं.
             धातू ई भाषार उगम बिंदू छ हानू वारसेक भाषातज्ज्ञेर केणी छ.गोरबोली भाषा भी येनं अपवाद छेनी."गद"कतो बोलणे ये  धातू परेन "गीद" ई गोरबोली भाषा वाड;मय प्रकार जलमेम आयो छ.अन "गीद"इज गोरबोली भाषारो प्रासंगिक रुप छ.गोरबोली भाषा व्यवहारे माईर 'निये,भडा, मांदा,मांदी', कांयी मांदा? कांयी मांदी? काय नर?
 काय मादी ? ई मेलफिमेल संवादेरो सयंभू रूप गोरबोली भाषा सवायी दुसरे कुणसीज भाषामं आढळ आयेनी.गोरबोली भाषार अस्तित्वेर स्वतंत्र ओळख अभिजात दर्जार भाषार निकष पूर्ण करचं.
            "वोल्गा से गंगा" ये इतिहासेर लेखक राहुल सांकृत्यायन कचं क, "इ.स.पूर्व सव्वा दोसौ पिढी पूर्व गोर जातीया पायी जाती है।"
           याने २५ वर्ष की एक पिढी माननेपर इ.स.पूर्व सव्वा दो सौ पिढी याने इ.स.पूर्व ५६२५ वर्ष पुराना गोर जाती का इतिहास है।"
                    येपरती निर्विवाद स्पष्ट वचं क,गोरमाटी गणसमाजेर अस्तित्वेर पेनेर कोसा जतरा लारं जावचं;ओतराज जुनो गोरबोली भाषार अस्तित्वेर पेनो सिद्ध वचं.
                 गोरबोली भाषार अस्तित्वेर प्रागेतिहासिक पुरावेरो एक महत्वपूर्ण साधन करन "मेरसंग्या,हारपणी" ये नाम भी तांडो आजेलगस जतन करन मेलछांडो छ.मेरसंग्या (मेहरगड) हारापणी  (हरप्पा) ये नाम गोरबोली भाषा अस्तित्वेर अति प्राचीन भौगोलिक रूप हारदं करन देयेसारू ताकतेर ठरचं.ई भौगोलिक रूप गोरबोली भाषार वय सिद्ध करेन उपयुक्त ठरचं.
             गोरबोली भाषार अभ्यास करतूवणा भाषार सामाजिक संस्था माईर ये प्रचलित शब्देर रूप भी धेनेम लेणू आवश्यक रचं. भाषा निर्मितीर प्रवासे माईरो *याडी* ई गोरबोली भाषारो मालकीरो पेलो शब्द "इंग्रजी - मदर, लॅटिन-  मेतर,संस्कृत - मातृ, जर्मन- मन्तेर,फार्सी- मादर ये से शब्देती भिन्न छ.इंग्रजी,लॅटिन,संस्कृत,जर्मन,फार्सी ये भाषा माईर शब्देमं भी "याडी"ये शब्देर व्युत्पत्तीर जड लाबेनी. अन कुणसीज तर्कसिद्ध पद्धतीती इंग्रजी,लॅटिन,संस्कृत,जर्मन,फार्सी  भाषा माइर मदर,मेतर,मातृ,मन्तेर अन मादर ये शब्देती "याडी"ये गोरबोली भाषा शब्देरो नातो जुळातू आयेनी,करन "याडी"ई गोरबोली भाषा शब्द तत्सम, तद्भव,परभाषीय ये शब्दसिद्धीर परलो देशी शब्द सिद्ध वचं.युन्डोयुरोपीयन भाषा कटमाळे माईर "तर - दर" ये प्रत्यय भी "याडी"ये शब्देनं लागन छेनी.गोरबोली भाषारो वंशगट निश्चित करतूवणा गोरबोली भाषार ये स्वतंत्र अस्तित्वेर ओळख सिद्ध करेवाळे ये रूपेन भी टाळतू आयेनी.
              गोरबोली भाषारो नातो भारोपीय कटमाळेती जोडेर प्रयोजन कतो गोरबोली भाषारो स्वतंत्र जन्म सिद्धांत नाकारेरो ई एक षडयंत्र सिद्ध वचं.गोरबोली भाषिक गोरमाटी गणसमाज ई आज आर्धिक नंजरेती दुबळो जरूर छ;पणन वाड;मयीन नंजरेती ऊ सेती श्रीमंत छ.ओर सोतार मालकीर अभिजात वाड;मयीन परंपरा छ,पणन ऊ मौखिक छ.
                भाषावार प्रांत निर्मितीर धोरणेती गोरबोली भाषारो मूळ अस्तित्व अन मूळ रूप आज धोकेमं आवगो छ.भाषा व्यवहारे माईर क्रियापदेर मूळ रूप भी भाषा व्यवहारे माईती भुलाडी पडते जारे छ. *रस* ये गोरबोली भाषा क्रियापदेर जागं  *हेत्तो - वेत्तो* ये क्रियापदेर योजना रुढ वेती जारी छ.मराठी भाषार प्रभावेती "तू ओतं रस कांयी ?" ये वाक्येर जागं "तू ओतं हेत्तो कांयी?" आसो चुकीरो भाषा व्यवहार आमलेमं आरो छ.ये चुकीर भाषा व्यवहारेती कतो वाना वानार भाषार शब्देर ठिकळीती गोरबोली भाषार मुलभुत संशोधनेर अन गोरबोली भाषारो ऐतिहासिक भाषाशास्त्र हुबो करेर दिशा धुंदळी वेती जारी छ.
               बोलीभाषाम भी अभिजात दर्जार वाड;मयीन परंपरा रचं येरो उत्कृष्ट उदाहरण गोरबोली भाषा मौखिक वाड;मय छ.गोरबोली भाषारो सौंदर्य संपन्न अभिजात रुप इ परंपरागत मौखिक वाड;मयेमं आज भी जीवतो छ.
             
 *मारी ओडेरी सोडे थाडीरं*
 *पिंजाराओ पिंज दे दं..!*
......................

 *चांदा छायी चांदणी*
 *चारोळीसी रात...*
  *चांदा जपजोरं...!*
  *मतो जोंऊरे वाट...*
  *पिंयारी सारी रात..*
    *चांदा जपजोरं....!*

गोरबोली भाषामं अभिजात साहित्येर सातत्यपूर्ण मौखिक परंपरा छ.गोरबोली भाषार ये अलंकारिक रूप सौंदर्येर स्वतंत्र वाड;मयीन ओळख जतन रेयेसारू गोर बनजारा बहुल क्षेत्रे माईरी विद्यापीठेर भाषा विज्ञान,भाषा अध्ययन विभागेमं गोरबोली भाषारो समावेश वेणू इ घणो गरजेर छ.तोज गोरबोली भाषार सर्वांगीण विकासेनं चालना मळीये... "गोरबोलीरो विकास;गोर गणेरो विकास" इ गोरगणेर विकासेरो बलस्थान हाम  भुलगे छा.ई गोरबोली भाषारो दुर्दैव छेनी तो गोरगण समाजेरो दुर्दैव छ.
             अभिजात भाषार दर्जार  कसोटीमं उतरेर ताकत भी गोरबोली भाषामं छ. *मार गोडेपं गुणी कोनी पडीवेरी!* ये प्राचीन रूपेरो आधुनिकरण  *मार कांयी आडरो कोनी!* ये रुपेमं वेरो छ.तरी पणन प्राचीन अन आधुनिक गोरबोली भाषार व्यावहारिक रुपेरो आंतरिक नातो कायम छ.
              प्राचीनता,श्रेष्ठता,स्वयंभूपणा अन सलगता  ये अभिजात भाषार दर्जार केंद्र सरकार जो निकष ठरामेलो छ ये निकष भी पूर्ण करेर ताकत गोरबोली भाषाम छ.भाषिक वर्चस्ववादी गटानं मोरो इ विधान पटीये क,कोनी? येर मनं पर्वा भी छेनी.भविष्येमंं गोरबोली भाषारे ये अभिजात दर्जारे रुपेनं न्याव मळेजवाळो छ.करन ओरे रुप सौंदर्येन जतन करणो ई आपणो सेरो धर्म छ.
               मूळनिवासी गोर (बनजारा) गणसमाजेर आदिम गोरबोली भाषानं न कुणसी मलक  न घटनात्मक संरक्षण? निदान महाराष्ट्र राज्येर "राजभाषा"करन तरी गोरबोली भाषानं मलक मळणू अन भारतीय संविधानेरे ८ वी अनुसूची - अनुच्छेद ३४४ (१) अन ३५१ कलमे अंतर्गत घटनात्मक संरक्षण मळणू, गोरबोली भाषार अभिजात भाषिक दर्जार ओळख सवारेर पिढिताणू जतन रेणू ईज मारो प्रामाणिक हेतू छ...!

*संदर्भ*- 
१,भाषाशास्त्र 
प्रा.आनंद भंडारे
२, गोरपान गोरबोलीतील भाषा सौंदर्य 
भीमणीपुत्र 
३,वोल्गा से गंगा
राहुल सांकृत्यायन 
४,बंजारा (संदर्भ कोश )
प्रा.मोतीराज राठोड 

               *भीमणीपुत्र*
           *मोहन गणुजी नायक*

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