Saturday, August 11, 2018

*वाते मुंगा मोलारी* भीमणीपुत्र मोहन नायिक

                                                                                                           *वाते मुंगा मोलारी*
                          ,                                                                                 My Swan song 

*पेनार वाणीरो पेनो अन पेनार वाणीर शब्द कतो कांयी वा कुणसे शब्देनं पेनार वाणीर शब्द केयेरो?*

      पेनार वाणीर शब्देर सोजा लेतूवणा पेनार पेनेरो कालखंड निश्चित वेणू गरजेर छ.प्राणीसृष्टी ते मानवीसृष्टीरे जीवन प्रवासेमाई *मनक्या ते माटी* बणेरो भान जना मानवप्राणीनं आयो ऊ कालखंड कतो पेनारो काळ!येरवासं पेनारो पेनो धुंडणू पडीये,जनाज पेनारो पेनो आपणेनं निश्चित करतू आये.
        ये संदर्भेमं जेष्ठ विचारवंत रावसाहेब कसबेर मत धेनेम लेणू गरजेर छ.ओनेर केणो छ क, "माणसाला माणूसपण भाषेमूळे प्राप्त झाले." येपरती सिद्ध वचं क,गोरबोली भाषारो उत्क्रांतीरो काळ ईज "माटी" बणेरो काळ!ईज पेनो पकडन आपणेनं पेनार वाणीरो कतो गोरबोली भाषारो कालखंड निश्चित करणू लागीये.भाषा परतीज मनक्या विकसित वेन माटी बणो छ;करन गोरबोली भाषिक माटी ऊ गोरमाटी! आपणे विचार विनिमयेर ध्वनीसाधनेर वापर जे काळेमं वेयेन लग्गो,निसर्ग,जीवजनगारीर भाषा भी आकलन वेयेन लग्गो ऊ काळ कतो पेनारो काळ.
         "ज्या क्षणी माणसातील माणूसपणाची जाणीवजागृती झाली,त्याचे निसर्गाशी एकेकाळचे असलेले जूने संबंध तोडून नवे संबंध प्रस्थापित करण्यास कारणीभूत ठरली त्या क्षणी इतिहासाचा जन्म झाला." हानू जेष्ठ विचारवंत रावसाहेब कचं.गोरुरो भाषिक,सांस्कृतिक इतिहासरो पेनो भी ईज छ.
        गोरबोली भाषा इ आदिम छ.ऊ कुणसीज भाषार उप बोली छेनी.गोरबोली भाषारो जर उंडो खल किदे तो गोरबोली भाषारो "गेयरुप" आपणे नंजरे मुंड्यागं हुबो रचं.गोरमाटी संस्कृती इ वाड;मयीन संस्कृती छ.वाड;मय कतो वाणीचा व्यापार हानू अर्थ अभिप्रेत छ.ये संदर्भेमं जेष्ठ अभ्यासक अशोक राणा कचं क, "वाड;मय म्हणजे वाणीचा व्यापार.लेखनकला अवगत नव्हती म्हणून केवळ वाणीचा वापर ज्या काळात होत असे त्या काळातील साहित्याला वाड;मय असे म्हणतात." हासतूवणा गीद..रोतूवणा गीद,सखेम गीद तो दकेम भी गीद.इ गोरुर जीवनशैली छ.गोरमाटी माईती "गीद" वजा करनाके तो ऊ गोरमाटी;गोरमाटी सिद्ध वेयेनी.ओरो मूळ अस्तित्वरो पेनो पार लुवा जावचं."गीद" इज गोरबोली भाषारो जन्म.सिद्धांत छ,कतो गीद ईज गोरबोली भाषारो पेनारो एक रुप छ.इ म कयिकवणा भाषातज्ञेर हावालो देन सिद्ध करमेलो छू.
        एक॔दरित प्राणीसृष्टी माईरो मनक्या ई "माटी"बणन जे कालखंडेमं मानवीसृष्टीम आयो ऊ काळ पेनारो काळ ये आरथेती ऊ गोरमाटी करन वाजेन लग्गो कतोज गोरमाटी इ शब्द भाषावाचक सिद्ध वचं.हानू मारो स्पष्ट मत छ.
        गोरमाटीर पूर्वज पणि ये नागवंशी रं.नाग सापेती साम्य दखाळेसारु ओ आपणे जीभेनं ताते सोनेती थोडसेक चटाको देन चिर देतेते ई प्रथा सदा गोरधाटीमं कालेताणू रुढ रं.येर वर्णन रसेले सरिक वारसेक इतिहासकार करमेले छ.
         "नाग हा उष्णरक्ताचा प्राणी असून तो उष्णकटीबंध म्हणजे भूमध्यरेषेच्या सभोवताली आढळतो.माणसाचा आणि नागाचा जन्म प्रथमतः याच भागात झालेला असल्यामुळे माणसाचा नागा सोबत उत्पत्ती पासून संबंध आहे". हानू अनराज जी.टिपले कचं.
      नाग अन माणसेरो जन्म पेलीवणा उष्णकटीबंधेरे भूभागेमं हुवो छ.अन नाग ई उष्ण लोयीरो प्राणी छ.नागेती साम्य दखाळेवासू आपणे जीभेनं चीर देयेर गोरधाटी माईर इ प्रथा अन *ताडो सिळो करं!* ये आसासे माईर भावसुचकता जर धेनेम लिदे तो उष्णकटीबंधेरे भूमध्य सागरेरे परिसरे माईरो पेदा हुवो जकोण पेलो माटी,ऊ गोरमाटी! इ अनुमान भी सिद्ध वचं.
           "नाग"इ गोरगणेरो टोटम- देवक छ.आज भी गोरमाटी नागेनं *लांबोकिडा* कचं.नागेर नाम भी लेयेनी.नाग काटो जेनं *पान लाग्गो* कचं.अर्थात देवकवाद आवजगो.कनाती तो पेनाती! बापदादाती> पेनाती हानू पेनारो पेनो स्पष्ट वचं. *पेनाती* इ शब्द गोरबोली भाषार स्वतंत्र अस्तित्वेर ओळख सिद्ध करचं.पेनारवाणी>पणीरवाणी> गोरवाणी=गोरबोली भाषा इ रुप प्रकट वचं.
        वाणी इ शब्द संस्कृत शब्द छ,हानू वारसेक अभ्यासक मानमेले छ.वारसेक संस्कृत शब्द शंकास्पद भी छ.देववाणी-गोरवाणी> वाणीरो बेपार=गोरबोली.वाणी>वाणीज्य,पणि>पणन.सैंधव संस्कृतीमं बेपार वदम ये से गोरमाटीर पूर्वज पणि गणेरे अधिन रं,करण वाणीज्य,बणज ये आरथेरो बंजारा इ शब्द गोरबोली भाषामं रुढ हुवो छ. अर्थात संस्कृत भाषिक आर्येर आयेर आंगाड्यातीज वाणी,पणि ये शब्द गोरबोली भाषामं रुढ रं.देव वाणी कतो देवक व्यवस्था जोपासेवाळे गोरुर वाणी हानू अर्थ गोरबोली भाषानं अभिप्रेत छ.
         गोरबोली भाषा व्यवहारे माईर कुणसे शब्द पेनार अन कुणसे अर्वाचीन? येर सोजा लेयेवासं तत्सम,तद्भव अन परभाषिक ये शब्द सिद्धीर भी आधार लेणू इ भी गरजेर छ.तत्सम,तद्भव,परभाषिक ये शब्द सिद्धीर भी परले शब्द,जेनं अभ्यासक देशी,देशज,देश्य केमेले छ."आर्यपूर्व काळात राहणार्या एतदेशीय वन्य जमातीच्या भाषेतून आलेले"! हानू देशी ये शब्दरो अर्थ मराठी शब्द रत्नाकर ये शब्दकोशेनं अभिप्रेत छ.
       पेनारवाणीर शब्द कतो जे शब्देर व्युत्पत्तीर जडे तत्सम,तद्भव,परभाषिक अन आर्यपूर्व काळे माईर वन्यजमातीर भाषामं भी लाबेनी ओ शब्द पेनार वाणी (बोली) माईर अस्सल गोरबोली भाषा शब्द सिद्ध वचं.आसे गोरबोली भाषा शब्देज पेनार वाणीर शब्द केतू आये.उद:- याडी,मंदा,मांदळो,हुंमाळो,बाटी,केटो,गोक,ढिंया,किर,लापळी (गोजीरवाणे), केकडा,कुपळा,अहि,हादो,ओल्डी,ओल्डा 
       येर सवायी कयिक संस्कृत शब्देर व्युत्पत्तीर जडे गोरबोली भाषा शब्देमं आढळ आवचं.ओ शब्द सदा मूळ संस्कृत शब्द छेनी उद:- लावण्यवती, लिंप,मांदियाळी आसे वारसेक संस्कृत शब्देर जडे गोरबोली भाषामं लाबचं.संस्कृत भाषा इ मूळ गोरबोली भाषा माईतीज विकसित वेमेली छ इ धेनेम लेणू महत्वेर छ.
      कायी अभ्यासकेर केणी छ क,वारसेक गोरबोली शब्द ये संस्कृत शब्देती साम्य पावचं,कतोज गोरबोली भाषा इ संस्कृत भाषा माईती वेपडी हुयी छ,हानू ओनेरो केणो छ.इ जर खरो विये तो आर्य भारतेम आयेर 2000 वर्ष आंगड्याती गोर बंजारा ये समृद्ध जीवन जगरेते हानू स्पष्ट मत जेष्ठ विचारवंत आत्माराम कनिराम राठोड व्यक्त करमेलो छ.तो पचं आर्य भारतेभं आयेर आंगड्या गोरमाटी ये मुके रं कांयी ? इ भी प्रश्न उपस्थित वचं.
      *महिषि* ई संस्कृत शब्द गोरबोली *भेसी* ये शब्देरो अपभ्रंश रुप छ.संस्कृत भाषिक आर्येनं *भेसी* ई प्राणी भारतेमं आयेर बादमज  देखेन मळो छ.मंत्रेर बळेपं विश्वामित्र भेसी निर्माण किदो छ,येरो आकलन ईज सिद्ध करचं.अन आर्य भेसी पूजक भी कोनी वेत्ते. *नातरो* नामेरे नवण गीदेमं गोर याडीभेनेर हिवडेपं चौथे नंबरेपं भेसी मंडागी छ 

*च्यार मंडोये..नामं..ये..मारी भेसलडीरो लेस्याये...*
*भेसलडीरो जावं...समदर ..हालेळो..*!

समुद्रेरे भरतीनायी तोनं भरभराट यश देयेवाळे भेसीनं भी म धोक दुचू.भेसी,पृथ्वी,मेलीया,गावडी,
छेळी,झाड-पाड येनेती गोरुरो नातो छ.
          गोरबोली भाषा *भेसी* ये शब्देनं मराठी म्हैस तो हिन्दीमं भैंस ई शब्द छ.भेसी- भैंस- म्हैस ये शब्देर साधर्म्य धेनेम लिदे तो संस्कृत भाषा इ आतेर मूळ निवासी लोक गणेरे भाषा माईती विकसित वेमेली छ."महिषि"ये शब्देती ई सिद्ध वचं.
         एकंदरीत निसर्ग,गावडी,भेसी,छेळी,पृथ्वी,मेलीया,झाडपाड ये जीव जनगानीरे भावभावनाती जे काळेमं गोरबोली भाषिक गोरगणेरो नातो प्रस्थापित हुओ ऊ काळ कतो पेनार काळ! पेनार वाणी कतो पणि गणेर गोरबोली भाषा ई रुप स्पष्ट वचं.
       समियानुसार भाषा बदलती आयी छ.बदलते रेणो इ भाषारो स्वभाव छ.भाषा बदलती रेये सवायी कुणसीज भाषा समृद्ध वेयेनी.गोरबोली भाषा भी येनं अपवाद छेनी.
           पेनार वाणीर शब्देर अस्मिता जपणू ई भी वास्तव छ;पणन तत्सम,तद्भव,परभाषिक शब्देर तिरस्कार करणू ई अभिव्यक्ती सामर्थ्येनं मारक ठरचं.पेनार आपण याडी बाप भी तत्सम,तद्भव अन परभाषिक शब्देनं लाडेती आपणे खोळेम लेन, गोरबोली भाषानं वेला कसाला करन जीवत रकाडमेले छ, इ भी धेनेम लेणू गरजेर छ...!

संदर्भ
1,- नागवंशी इतिहास 
  आम्ही नागवंशी कसे?
      प्रा.अनराज जी.टिपले
2, - डाॅ.रावसाहेब कसबे
     एक मूल्यमापन 
3, - कृषी विरुद्ध ऋषी
    अशोक राणा

                                                                                                                        *भीमणीपुत्र*
                                                                                                                 *मोहन गणुजी नायिक*

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